गुरुवार, 21 मार्च 2013

पढ़ाई के लिए घबराहट अच्छी है/ वागीशा कटेंट कंपनी


   बच्चों की पढ़ाई को लेकर अब खुद बच्चों के अलावा उनके मातापिता भी व्यस्त हैं। आप कहीं  भी किसी भी शहर में चले जाएं बच्चे आपको हर जगह व्यस्त नजर आएंगे।  सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर वह अच्छे अंक नहीं ला सके  तो उनका किसी अच्छे स्कूल में  प्रवेश कराना मुश्किल हो जाएगा।
   डा विनीता मल्होत्रा झा कहती हैं कि पढ़ाई में पिछडऩे के कई कारण हैं  कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं जो बहुत ज्यादा पढ़ नहीं सकते ऐसे बच्चों पर जब पढ़ाई का दबाव बनाया जाता है तो वह गहन अवसाद  में  चले जाते हैं। परीक्षा के समय बच्चों को घबराहट होती है  कि पता नहीं पेपर कैसा होगा? इस बीच उनके भीतर आत्मविश्वास की भी कमी हो जाती है, भविष्य का डर सताने लगता है मातापिता  का  भी दबाव रहता है कि अगर नंबर कम लाओगे तो प्रवेश कैसे मिलेगाइस दबाव के चलते उनका पूरा ध्यान पढऩे के बजाए इस चिंता से ग्रसित हो जाता है कि अगर नंबर न आ पाए तो? और वह अवसाद में चले जाते हैं। पर हां अगर चिंता या घबराहट सिर्फ पढ़ाई की हो तो यह घबराहट अच्छी है। अगर घबराहट नहीं होगी तो फिर बच्चे मेहनत नहीं करेंगे जिसे घबराहट होगी वह ही आगे के लिए पढ़ेगा जिसे यह घबराहट नहीं होगी वह निश्चिंत हो जाएगा। इसलिए पढ़ाई का दबाव होना अच्छी बात है और इसे सकारात्मक लेना चाहिए। अभिभावक अपने बच्चे को समझाएं कि ऐसी घबराहट वाला वह पहला नहीं है सबको पढ़ाई के समय घबराहट होती है।  लेकिन अति  घबराहट नुकसान देती है। घबराहट इतनी  भी न हो कि पाठ को याद ही नहीं किया जा सके और पढाई मेंं एकाग्र न हो सके।
दूसरा क्या कर रहा है इस पर ध्यान न दें तो बेहतर हैं क्योंकि हर बच्चे का पढऩे का तरीका अलग  होता है।  हर बच्चे की इच्छा होती है कि वह ही टॉप करे पर टॉप करने वाला एक ही बच्चा होता है। इसलिए सबसे पहले बच्चों की क्षमता के बारे में जानें और उसी के हिसाब से उसकी  पढ़ाई पर ध्यान दें ।
बच्चों को भी मालूम होना चाहिए कि उनकी क्षमता क्या है? हर माता पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे कम से कम 90 प्रतिशत अंक लाएं पर यह संभव नहीं 60 प्रतिशत लाने वाला बच्चा 70 प्रतिशत तो ला सकता है पर 90 प्रतिशत नहीं। अगर आप दबाव डालेंगे तो भी बच्चा नहीं कर पाएगा और हताश होकर कोई भी कदम उठा सकता है। अभिभावकों को अपनो बच्चों से पहले खुद से यह सवाल करना चाहिए कि क्या वह परफेक्ट हैं? क्या बच्चे मातापिता से कोई उम्मीद नहीं रखते, अवश्य  रखते हैं । वह चाहते हैं कि काश मेरे माता पिता के पास भी वैसी ही चीजें होती जैसे मेरे दोस्त के घर में हैं। 
 हर बच्चे की ध्यान देने की और फिर उसे ग्रहण करने की क्षमता अलग-अलग होती है। माता-पिता और शिक्षकों का बच्चों के साथ हमेशा संवाद में बना रहना जरूरी है।  अगर बच्चों को नंबर और फिर एडमिशन का तनाव है तो कहें कि अभी सिर्फ पढ़ाई करें जब नंबर आएंगे तब देखा जाएगा।  बच्चों से पूछे कि पढाई का उनका टारगेट क्या है, टाइमटेबल क्या है? पढाई के साथ इन्जायमेंट भी जरूरी है। हर बच्चे के लिए 8 घंटे सोना चाहिए। टहलें, योगा करें दोस्तों से बात करें।